Tuesday 22 October 2013

जहरीली बूंदें

कहानी शुरु होती है, एक शराब-पार्टी से. यह पार्टी एक "धर्मनिरपेक्ष अपराधी" द्वारा अपने घर पर दी जाती है. जिसमें एक "क्रांतिकारी भाई" और एक "दबंग औरत" अपने टीम के लगभग 8 सदस्यों के साथ शरिक होते हैं. पार्टी का दौर शुरु होता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "कौन-कौन किस-किस ब्रांड की शराब पियेगा?"
सभी अपने-अपने ब्रांड के बारे में बताते हैं. इसमें "दबंग औरत" और उनकी टीम के दो और सदस्य "एक लड़की" और "निरपेक्ष भाई" शराब पीने से मना करते हैं. तब पार्टी देने वाला धर्मनिरपेक्ष अपराधी "दबंग औरत" और "निरपेक्ष भाई" पर पीने के लिये कोई दबाव नहीं बनाता है.
लेकिन "लड़की" के पीछे पड़ जाता है और उसे पीने के लिये तरह-तरह के लेक्चर देने लगता है. जैसे;
"पीना चाहिये, पीने से डर खत्म होता है. कुछ नहीं है, बस यह एक डर है."
"हमें समाज की सारी वर्जनाओं को तोड़ना है, जो हमें संकुचित बनाती हैं."
और तमाम तरह की बातें.
"लड़की" बढते दबाव को देखते हुये, टीम के एक सदस्य "जानकार वकील" से कहती है कि, वह उसे एक ग्लास पानी में वोदका की दो बूंद मिलाकर (महक आने के लिये) दे दे. "जानकार वकील" ऐसा ही करते हैं. "लड़की" उस ग्लास को पीकर खाली कर देती है. लेकिन जब उसे नशा नहीं होता है, तब;
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: " तुमने पी है?"
लड़की: "हाँ...!!!"
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "नहीं तुमने नहीं पी है. रुको मैं पैग बनाकर देता हूँ."
फिर वह धर्मनिरपेक्ष अपराधी अंदर से जाकर वोदका का एक पैग बनाकर लाता है और "लड़की" को देता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "पियो."
लड़की: "हाँ पी रही हूँ, मुझे अच्छी नहीं लगती, इसलिये धीरे-धीरे पियूँगी."
फिर सब बातों में उलझ जाते हैं तो, "लड़की" वह पैग ले जाकर बेसिन में बहा देती है.
इस बीच जिस 'निरपेक्ष भाई' ने शराब पीने से मना कर दिया था, वह लगभग 9:00 बजे वहाँ से अपने घर जाने के लिये निकल जाते हैं.
पार्टी शबाब पर आती है, इस बीच आप सबको यह बता दें कि, शराब का पूरा इन्तेजाम धर्मनिरपेक्ष अपराधी की तरफ से रहता है, जो उसका ड्राइवर लेकर आता है.
क्रांतिकारी भाई: "अरे 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी भाई' वो कविता सुनाइये, जो आपके पिताजी ने लिखी थी."
धर्मनिरपेक्ष अपराधी अपने पिताजी द्वारा लिखी कविता सुनाता है.
"क्रांतिकारी भाई", जिन्होने शायद रोने की ट्रेनिंग टेलीविजन पर आने वाले धारावाहिकों के "सास-बहुओं" से ली है, रोना शुरु करते हैं. उनके नेतृत्व में उनकी पूरी टीम रोने लगती है.
फिर एक बार बातचीत का दौर शुरु होता है. इन बातचीत के दौरों में 'लड़की' बीच-बीच' में अपने 'हमसफर' और 'भाई' से बात करती रहती है, और वहाँ क्या-क्या हो रहा है, यह भी बताती रहती है.
इस बीच धर्मनिरपेक्ष अपराधी 'लड़की' से अलग से बातचीत जारी रखता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "एक काम करो, 'हमसफर' को छोड़ दो, और मुझे अपना लो."
लड़की इसे मज़ाक के तौर पर लेती है और
लड़की: "अब बहुत देर हो चुकी है, अब ऐसा तो नहीं हो सकता."
फिर बातचीत जारी रहती है.
अब खाने की तैयारी शुरु होती है, सब खाने बैठते हैं. तभी टीम की एक सदस्य "पहाड़ी आदिवासी लड़की" जो एक-एक बोतल 'ओल्ड मोंक' रम नीट (बिना पानी के) पीकर चट्टान की तरह खड़ी रहने के लिये मशहूर है, आश्चर्यजनक ढंग से सिर्फ चार पैग (जिसे पानी मिलाकर बनाया गया था) पीने के बावजूद उल्टियाँ करने लगती है और असहाय होने की स्थिति में पहुंच जाती है.
उसे उल्टी कराने के बाद सब उसे धर्मनिरपेक्ष अपराधी के एक कमरे में ले जाकर बिस्तर पर लिटा देते हैं.
रात के लगभग 12 या 1 बज रहे होते हैं, फिर भी टीम के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभालने वाले "क्रांतिकारी भाई" और "दबंग औरत" के कहने पर टीम के सभी सदस्य वहाँ पर 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' को अकेले छोड़कर जाने की तैयारी करने लगते हैं. धर्मनिरपेक्ष अपराधी 'लड़की' को फिर अलग ले जाता है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "ऐसा करो, तुम यहीं रुक जाओ."
लड़की: "नहीं सर, मैं नहीं रुक सकती."
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "नहीं, तुम यहीं रुक रही हो, 'दबंग औरत' को बोल दो."
लड़की 'दबंग औरत' के पास आती है.
लड़की: "मैं यहीं रुक रही हूँ क्या?"
दबंग औरत: "किसने कहा?"
लड़की: "धर्मनिरपेक्ष अपराधी ने."
दबंग औरत: "उन्होने कहा है, ठीक है तुम रुक रही हो."
लड़की: "लेकिन मैं सोऊँगी कहाँ? दो ही कमरे हैं. एक कमरे में 'पहाड़ी आदिवासी लड़की' बेसुध दशा में है, दूसरे कमरे में 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' सोएंगे."
दबंग औरत: "अभी 'पहाड़ी आदिवासी लड़की का कमरा बंद है, लेकिन फिर वो खुल जायेगा, तुम उसमें सो जाना."
लेकिन लड़की टीम के अन्य सदस्यों से सिफारिश कराके अपने रुकने के लिये मना कर देती है.
धर्मनिरपेक्ष अपराधी का चेहरा उतर जाता है, वह लड़की से कहता है;
धर्मनिरपेक्ष अपराधी: "तुम नहीं रुकी ना...!!! तुम रुकती तो कितना अच्छा होता ना...!!!"
लड़की अपने भोलेपन में 'धर्मनिरपेक्ष अपराधी' का दिल रखने के लिये;
लड़की: "कोई बात नहीं सर, मैं फिर कभी आ जाऊँगी. अभी तो मेरा जाना जरूरी है, लेकिन फिर आऊँगी ना...!!!"
फिर सब बाहर निकलने की तैयारी करने लगते हैं. इस बीच टीम के एक सदस्य "कलाकार भाई" वहाँ खुद के रुकने का प्रस्ताव 'दबंग औरत' के सामने रखते हैं, तब दबंग औरत जोर से डपटते हुये कहती हैं;
दबंग औरत: "नहीं कोई यहाँ नहीं रुकेगा. सब अपने-अपने जूते-चप्पल पहनों और निकलो यहाँ से."
टीम के सभी सदस्य सिटपिटाये हुये, रात के लगभग 1:00 या 1:30 बजे तक (जब सुबह होने में मात्र 4-5 घंटे बाकी रहते हैं), एक बेसुध, असहाय लड़की जो अपने आप में तो बिल्कुल नही रहती उस समय, उसे अकेले छोड़कर वहाँ से निकल लेते हैं.
...................क्रमशः

6 comments:

  1. सच देर से ही सही सामने आता ही है और आयेगा भी.....

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  2. मुझे सन्दर्भ नहीं ज्ञात ..लेकिन अगर घटना सच है तो सारी बात जरूर रखिए

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  3. Tareekh bhi uplabdh karaiye!

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. मुझे मालूम नहीं आप किसके बारे में बात कर रहे हैं. लेकिन 'दबंग औरत' रखैल व SUPPLIER हो सकती है और इसीलिये वह पहाड़ी लड़की के केस को ख़तम करने या कमजोर बनाने में लगी थी. पहाड़ी लडकी को मुकदमा करनी चाहिए जिससे दूसरी लड़कियां तथाकथित धर्मनिरपेक्ष से कम से कम अब बच सकें.

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  6. कोई एक महीने पहले मुझे इन सब घटनावो के बारे में ज्ञात था । लेकिन लड़की के शुभ्चिन्त्सको की माने तो मुह खोलने से डर रही थी। खैर ई त होना ही था।

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